Editorial: भारत के मामलों में दूसरे देशों की दिलचस्पी चिंताजनक
- By Habib --
- Monday, 01 Apr, 2024
The interest of other countries in India's affairs is worrying
भारत में राजनीतिकों पर घोटालों के आरोप में सरकारी संस्थाओं की कार्रवाई और अदालत की प्रक्रिया पर जिस प्रकार दूसरे देशों की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं, वह निश्चित रूप से चिंताजनक एवं भारत के आंतरिक मामलों में दखल है। यह स्वाभाविक जान नहीं पड़ता कि कोई देश निर्णायक बात कहते हुए इसे लोकतांत्रिक मूल्यों पर आघात करार दे और फिर इसके संरक्षण के लिए खड़े होने का दावा करे। भारत स्वत: विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है और यहां पर न्यायपालिका पूर्ण रूप से स्वतंत्र है, हालांकि इन देशों को लगता है कि भारत में जनता का दमन हो रहा है और उनके अधिकार खत्म किए जा रहे हैं। गौरतलब है कि जर्मनी, अमेरिका और फिर संयुक्त राष्ट्र की ओर से ऐसी टिप्पणियां की गई हैं, जो कि पूरी तरह अनुचित जान पड़ती है।
इस प्रकरण पर विदेश मंत्रालय की सोच है कि समय-समय पर भारत को कभी मानवाधिकार, कभी लोकतांत्रिक व्यवस्था तो कभी आर्थिक सुधार के मुद्दे पर घेरने वाली शक्तियां ही इसका भी हिस्सा हैं। यही वजह है कि जैसे ही विदेशी सरकारों ने दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी या मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के बैंक खातों को आयकर विभाग द्वारा जब्त करने पर सवाल उठाए तो भारत ने जवाबी कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मालूम हो, सवाल उठाने में अग्रणी अमेरिका और जर्मनी दोनों देश भारत के करीबी रणनीतिक साझेदार हैं, जिनसे द्विपक्षीय रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं। फिर भी भारत ने इन्हें सख्त संदेश देने में कोई कोताही नहीं की है। जिस तरह से भारत की न्यायिक प्रणाली पर संदेह जताया गया, उसको काफी गंभीरता से लिया गया है।
यही वजह है कि विदेश मंत्रालय ने जर्मनी और अमेरिका के दूतावास के वरिष्ठ अधिकारियों को बुला कर अपनी आपत्ति से अवगत कराया। अगर भारत की किसी कूटनीति के संदर्भ में यह बात कही गई होती तो विदेश मंत्रालय भी एक प्रतिक्रिया जता कर मामले को रफा-दफा कर देता, लेकिन न्यायिक प्रणाली पर सवाल उठाने या लोकतांत्रिक प्रक्रिया को निशाना बनाने पर मामला गंभीर हो जाता है।
गौर हो कि बीबीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंध में 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले एक सीरीज चलाई थी, जिसमें अनेक आपत्तिजनक बातें कही गई थी। अब फिर आम चुनाव का समय है और देश के अंदर घट रही घटनाओं पर विदेश का मीडिया एवं वहां की सरकारों की ओर से ऐसी बातें कही जा रही हैं, जोकि भारत की संप्रभुता और उसकी अखंडता के लिए खतरा है। कुछ शक्तियां भारत को किसी न किसी मामले में घेरने की कोशिश कर रही है।
इनकी ओर से कभी मीडिया में आलेख के जरिए तो कभी सरकारी या गैर-सरकारी एजेंसियों की रिपोर्ट के जरिए ऐसा किया जाता रहा है। जर्मनी और अमेरिका की प्रतिक्रियाओं पर इनके राजनयिकों को तलब करने का एक मकसद दूसरे देशों को इसे दूर रहने का संदेश देना भी है। विदेश मंत्रालय के अधिकारी यह मानते हैं कि लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर सवाल उठाने को लेकर हुई तीखी प्रतिक्रियाओं के बावजूद इन देशों के साथ भारत के रिश्तों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला है, क्योंकि अभी तक जिन देशों की सरकारों ने मुद्दे को उठाया है उनसे लगातार कई मोर्चों पर विमर्श चल रहा है।
गौरतलब है कि यह पहला मौका है जब भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया की निष्पक्षता को लेकर अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र की तरफ से सवाल उठाए गए हैं। इसके पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तार पर जर्मनी और अमेरिका दोनों ने ही चिंता प्रकट करते हुए उम्मीद जताई थी कि भारत में आप पार्टी के मुखिया के साथ स्वतंत्र व पारदर्शी तरीके से न्याय होगा। वास्तव में यह किसी देश के अंदर की शासन प्रणाली का मामला है। आरोप लगना और उसके बाद अदालती की कार्यवाही से गुजरना भी सामान्य बात है। हालांकि न्यायपालिका को पक्षपाती करार देना बेहद गंभीर है।
खुद इन देशों के अंदर जिस प्रकार से राजनीतिक एवं लोकतांत्रिक मूल्यों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, क्या उसका कोई जवाब देगा। निश्चित रूप से भारत की ओर से इन देशों को जिस प्रकार का सख्त संदेश दिया गया है, वह उचित ही है। इन देशों की ओर से लगाए गए आरोपों से देश की छवि को नुकसान पहुंचता है। जरूरत इसकी भी है कि भारत की जांच एजेंसियों और उसकी न्यायपालिका पर भरोसा कायम रखा जाए।
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